समर्थ सद्गुरु दादागुरु का अवतरण दिवस
देश दुनियां की सबसे बड़ी निराहार महाव्रत साधना के 27 माह.
नसरूल्लागंज से चांद मियां की रिपोर्ट
नसरुल्लागंज.अखंड निराहार माँ नर्मदा सेवा परिक्रमा का 75 वां दिन
धर्म आध्यात्म व ज्ञान कहता है कि सम्पूर्ण सृष्टि ,प्रकृति अपनी सृजनात्मक परिधि को सुरक्षित रखने के लिए समय समय पर सृजनहार से किसी ऐसी शक्ति को धरा पर प्रगट करने का मनुहार करती है जो दैहिक दैविक भौतिक असन्तुलन को संतुलित कर सके।
तिथियों के लेखा पत्र पर 23 जनवरी का स्वर्णिम दिन वही दिन है जब सृष्टि के रचनाकार ने सृष्टि की जीवंतता को बनाए रखने के लिए एक दिव्य औऱ सिद्ध विभूति को अवतरित किया जब माघ माह में सूर्य उत्तरायण हुए प्रकृति की उत्कृष्टता चर्मोत्कर्ष पर आई रवि की रश्मियों से पूरा जीवजगत ऊर्जावान हुआ तब अवतरण हुआ एक तेजस्वी व्यक्तित्व का जिन्हें हम सब समर्थ सद्गुरु दादागुरु के नाम से जानते हैं। सद्गुरु अर्थात ईश्वर का सच्चा प्रतिनिधि जिसकी आकर्षण शक्ति सम्पूर्ण ब्रह्मांड को स्थिरता प्रदान करती हैअतः इसी स्थिरता के लिए उदय हुआ दादागुरु का जिनके चिंतन,मनन,आचार ,विचार,व्यवहार औऱ उपहार में सिर्फ प्रकृति औऱ माँ नर्मदा का संरक्षण हैं।
दादागुरु अर्थात जप, तप,धर्म , साधना,प्रेम,वात्सल्य,तेज,ओज इत्यादि का एकरूप अथवा पंचमहाभूतों की ऊर्जाओं को सिद्धहस्त करने वाले अवधूत शिवरूप। जिन्होंने अपना सर्वस्व माँ नर्मदा के लिए न्यौछावर कर दिया एवम नर्मदापथ हरित क्षेत्र में हो रहे अतिक्रमण, खनन,विशालकाय निर्माण वन परिक्षेत्र के अंधाधुँध दोहन के साथ गन्दे नालों के नर्मदा में मिलने से व्यथित होकर आने वाली पीढ़ी के अस्तित्व के लिए एक निर्णय लिया और सदानीरा के नीर को बचाने व संजीवनी को संकट से उबारने अर्थात नर्मदा के अस्तित्व लिए अपना जीवन दाव पर लगा 17 अक्टूबर 2020 से अपनी सात सूत्रीय मांगों के साथ अपना दूसरा सत्याग्रह महाव्रत आरम्भ कियाऔऱ अनवरत हज़ारों किलोमीटर की यात्राएं करते हुए जनसंवाद स्थापित किया आज सत्याग्रह को ढाई साल से ऊपर हो गए हैं और दादागुरु निराहार ही पैदल परिक्रमा में हैं।
नदी नहीं तो सदी नहीं” “,सृजन का द्वार है विसर्जन का नहीं “” नर्मदा ही सत्य है” जैसे हज़ारों ब्रह्मवाक्यों से समाज में जनजागृति लाने वाले दादागुरु ने 2010 में “नर्मदा मिशन” की भी स्थापना कर धर्म धरा धेनु प्रकृति पर्यावरण व माँ नर्मदा संरक्षण सम्वर्धन की दिशा में एक अभूतपूर्व अध्याय आरम्भ किया जिसने दादागुरु के मार्गदर्शन व सानिध्य नें अनेकों नए इतिहास गढ़े व विश्व कीर्तिमान हासिल किए।
जनजन तक प्रकृति और माँ नर्मदा सहित सभी पवित्र नदियों को संरक्षित करने का विचार पहुंचाने वाले दादागुरु का न तो मठ हैं न आश्रम औऱ न ही कोई संचय। नर्मदापथ ही उनका मठ है यूँ तो वे सालों से इसी पथ पर अनवरत गतिशील रह विविध सृजनात्मक विधियों से जनजागरण कर रहे हैं।पर
*वर्तमान में सत्याग्रह महाव्रत के माध्यम से दादागुरु सिर्फ नर्मदाजल ही लेकर पैदल माँ नर्मदा की परिक्रमा कर रहे हैं और अपने संदेश में बार बार ये बता रहे हैं नर्मदाजल की सामर्थ्यता देखना हो तो मुझे देखो माँ का जल मेरे शरीर में रक्त बन कर दौड़ रहा है।
माँ के महत्व को सम्पूर्ण नर्मदापथ के जनजन तक पहुंचाने वाले दादागुरु को पथ पर दौड़ते हुए पहाड़ों पर दौड कर चढ़ते हुए देखकर जहाँ समाज को माँ नर्मदा की दैवीय सामर्थ्य का अनुभव हो रहा है वहीं दादागुरु की असाधारण शक्ति का भी दर्शन हो रहा है क्योंकी जगतजननी आदिशक्ति के पथ पर इस कठिन तप से चलना किसी अवधूत के ही सामर्थ्य की बात है।
नित नए अनुभवों के साथ परिक्रमा अपने लक्ष्य की औऱ अग्रसर है। दादागुरु का संदेश है कि इस युग में गुरु का सानिध्य प्रकृति चिंतन के बिना सम्भव नहीं है मानवीय समस्याओं का यथार्थ और सार्थक समाधान प्रकृति के पास है इसलिए हमें अपनी संवेदनाओ को प्रकृति से जोड़ना ही होगा। प्रलय की आहट आ चुकी है उसके रुख को मोड़ने के लिए एकजुट होना होगा।
आज दादागुरु के अवतरण दिवस पर सम्पूर्ण समर्थ परिवार जितना आनंदित है और खुद को ईश्वर का कृपापात्र मानता है उतना ही अपने आराध्य को निराहार चलता देखकर व्यथित भी है सबका ह्रदय वेदना से भरा हुआ है क्योंकि माँ नर्मदा के अस्तित्व और हमारा जीवन बचाने के लिए हमारे इष्ट खुद के जीवन को दाव पर लगाए हुए हैं।
सत्ता और समाज की उदासीनता ने सत्याग्रह महाव्रत की अवधि को पीड़ा के शिखर तक बढ़ा दिया है। सम्पूर्ण नर्मदासन्तानों की अरदास है की शीघ्र ही ये महाव्रत पूर्ण हो कोई नहीं जानता इसके गर्भ में कितने माणिक कितने पत्थर हैं पर इतना अवश्य है कि यह प्रलय का निग्रह औऱ शिव का अनुग्रह है।
औऱ अनुग्रह करने वाले भक्तवत्सल दादागुरु किसी दैवीय अनुदानमात्र की ही परिणीति हैं जो सन्त साधक व सुधारक की सीमा से परे हैं ।वे जीवजगत के उद्धार के लिए समाज और सृष्टि के कल्याण के लिए आत्मसमर्पित हैं।
नक्षत्रों के नवनियन्ता तथा साधना के शिखर औऱ तपोबल के मेरु दादागुरु की इस अदभुत सत्ता एवम अवधूत रुप को हम प्रणाम करते हैं।